Responsive Menu

Download App from

Download App

Follow us on

Donate Us

हिंदी राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक : वाराणसी में भव्य राजभाषा सम्मान समारोह

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

 

वाराणसी 21 सितम्बर। हिंदी केवल संवाद और सम्पर्क की भाषा नहीं बल्कि भारत की आत्मा और राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक है। यह विचार  राजभाषा सम्मान समारोह-2025 के मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता श्री दिनेश चंद्र ने चंद्रा साहित्य परिषद (ट्रस्ट) इंदिरा नगर, चितईपुर, वाराणसी में रविवार को आयोजित भव्य काव्य गोष्ठी के दौरान व्यक्त किए। हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत हुए इस आयोजन में पूर्वांचल के जौनपुर, सोनभद्र, चंदौली और मिर्जापुर से आए नामचीन कवियों ने अपनी स्वरचित कविताओं से जनमानस को हिंदी की महत्ता का अहसास कराया।  डॉ. करुणा सिंह की सरस्वती वंदना से प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाते हुए संस्था के संरक्षक डॉ. महेंद्र नाथ तिवारी ‘अलंकार’, राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि इंजीनियर राम नरेश “नरेश”, नजर न्यूज नेटवर्क के सीएमडी और वरिष्ठ पत्रकार डॉ. कैलाश सिंह विकास सहित अनेक गणमान्य अतिथियों ने संस्थापक स्व. चंद्रावती नरेश और माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसी क्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष इंजीनियर राम नरेश “नरेश” ने अतिथि कवियों का माल्यार्पण कर अंगवस्त्रम, प्रसस्तिपत्र और उपहार भेंटकर अभिनंदन किया।  समारोह के मुख्य अतिथि श्री दिनेश चंद्र जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि जनमानस में विचारों और भावों की अभिव्यक्ति की सबसे स्वाभाविक भाषा हिंदी है और यही उसकी वास्तविक शक्ति है। हिंदी देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाली भाषा है और यही कारण है कि इसे राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक कहा जा सकता है।  इसके पश्चात कविताओं का दौर शुरू हुआ। डॉ. छोटेलाल सिंह ‘मनमीत’ की प्रेरक रचना ने श्रोताओं में हौसला जगाया तो नाथ सोनांचली की नज़ाकतभरी पंक्तियों ने अदब की गूंज सुनाई। दीपक दबंग ने “माँ भारती की शान है हिंदी” का उत्साही स्वर छेड़ा, जबकि भुलक्कड़ बनारसी ने अपने व्यंग्यात्मक अंदाज़ से श्रोताओं को गुदगुदाया। डॉ. महेंद्र नाथ तिवारी ‘अलंकार’ की प्रस्तुति “ज़ुबान-ए-हिंद पर अभिमान होना चाहिए” ने माहौल को गर्व से भर दिया। गिरीश पांडेय ने विदेशों में हिंदी की पहचान को राष्ट्र की शान से जोड़ा, माधुरी मिश्रा ने लेखन को सामाजिक सच का आईना बताया, आनंद कृष्ण मासूम ने गाँव की मिट्टी और बदलते परिवेश की पीड़ा उजागर की, वहीं नवल किशोर गुप्त ने ‘हिंदी ही हिंदुस्तान की पहचान’ का सशक्त संदेश दिया। कवयित्री साधना साही ने हिंदी को भारत माता के मस्तक की बिंदी की संज्ञा दी।   इसके अलावा हरिबंश सिंह बवाल, अशोक प्रियदर्शी, मधुलिका राय, अखलाक भारतीय, आलोक बेताब, अतुल श्रीवास्तव, सिद्धनाथ शर्मा ‘सिद्ध’, संतोष प्रीत और अन्य कई कवियों ने अपनी कविताओं से इस गोष्ठी को नई ऊँचाई तक पहुँचाया।  पत्रकारिता जगत से वरिष्ठ पत्रकार डॉ. कैलाश सिंह विकास, आनंद कुमार सिंह ‘अन्ना’, देवेंद्र श्रीवास्तव और पत्रकार योगेंद्र कुमार की भागीदारी ने कार्यक्रम को और अधिक प्रभावशाली बना दिया।  समारोह के अंत में संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंजीनियर राम नरेश “नरेश” ने सभी कवियों और पत्रकारों का धन्यवाद किया। साथ ही वरिष्ठ पत्रकार डॉ. कैलाश सिंह विकास के औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ आयोजन का समापन हुआ।  यह संपूर्ण आयोजन स्मृति शेष चंद्रावती नरेश की शिक्षा और साहित्य के प्रति समर्पण को समर्पित रहा तथा हिंदी के गौरव, उसके संवर्धन और राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक स्वरूप को पुनः स्थापित करता हुआ नजर आया।

 

 

 

 

आज का राशिफल

वोट करें

भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के बाद कांग्रेस ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। क्या सरकार को इस पर विचार करना चाहिए?

Advertisement Box

और भी पढ़ें

WhatsApp