प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए मुस्लिम समाज में बहुविवाह को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पहली पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो उसे दूसरी या तीसरी शादी करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। दरअसल, प्रयागराज निवासी एक महिला ने अपने पति के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। आरोप था कि पति ने दूसरी शादी कर ली है और पहली पत्नी व बच्चों के भरण-पोषण की पूरी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा। महिला ने अदालत से न्याय की गुहार लगाई। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लाम में बहुविवाह की परंपरा है, लेकिन यह बिना शर्त का अधिकार नहीं है। पति पर यह जिम्मेदारी है कि वह पहली पत्नी और बच्चों का संपूर्ण ख्याल रखे। यदि वह उनकी जरूरतें पूरी नहीं कर सकता, तो दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा – “जब पहला परिवार ही भूखा सो रहा हो, तब दूसरी या तीसरी शादी करना केवल अन्याय ही नहीं, बल्कि समाज और धर्म दोनों के साथ खिलवाड़ है।” अदालत की इस टिप्पणी को मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से जोड़कर देखा जा रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने इसे सराहा और कहा कि यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहतकारी साबित होगा, जिन्हें पति की बहुविवाह प्रवृत्ति के कारण उपेक्षा और आर्थिक संकट झेलना पड़ता है।
